लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 1 Neelam Kulshreshtha द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 1

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

सहभागी लेखिकायें

डॉ. सुधा श्रीवास्तव, डॉ. प्रणव भारती, नीलम कुलश्रेष्ठ, मधु सोसी गुप्ता, डॉ. मीरा रामनिवास, निशा चन्द्रा

[अस्मिता, महिला बहुभाषी साहित्यिक मंच, अहमदबाद ]

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आभार

श्री महेंद्र शर्मा, सी ई ओ, मातृभारती

अस्मिता को साझा उपन्यास लिखने की प्रेरणा देने के लिए

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एपीसोड - १

``ऑनलाइन जर्नलिस्ट अवॉर्ड गोज़ टु प्रिशा पटेल फ़ॉर हर राइट अप `यूज़ ऑफ़ सेनेटरी नेपकिन्स एन्ड हाइजीन इन वीमन ऑफ़ विलेजेज़। ``शी मीडिया के पुरस्कार समारोह में घोषणा होती है।

बाईस वर्षीय प्रिशा पटेल आत्मविश्वास से स्ट्रेट लहराते बालों में पलाज़ो के ऊपर कुर्ती व उसके ऊपर पारदर्शी स्लीवलेस जैकेट पहने गहरी लिपस्टिक लगाए स्टेज की तरफ़ बढ़ती है। हॉल में अन्धेरा है लेकिन मंच की स्पॉट लाइट्स में प्रिशा के लम्बे ईयर रिंग्स चमक रहे हैं। दामिनी अपनी कुर्सी पर बैठी सकुचा जाती है। पुरस्कार वह भी` एम सी ``[मेंस्ट्रुएशन सायकल यानि स्त्रियों का मासिक धर्म ] के लिए उपयोग में आने वाले नेपकिन्स के लिये ? वह पास बैठी मीशा से धीमे से कहती है, ``ज़माना कितना बदल गया है। बरसों पहले `नेपकिन्स `क्या `एम सी`नाम भी पुरुषों के सामने नहीं लिया जाता था, चाहे वे घर के ही क्यों न हों। तब कोई सेनेटरी नेपकिन्स नाम जानता भी नहीं था। घर के पुराने कपड़ों को धोकर उपयोग में लाया जाता था। ``

मीशा की आँखें आश्चर्य से फैल जातीं हैं, ``छी ---ऐसा ?``

``मेरी दादी का घर कितना पढ़ा लिखा था लेकिन घर की कोई लड़की एम सी के दिनों में न रसोई में आ सकती थी, न पानी का घड़ा छू सकती थी। उन दिनों तो फ़्रिज तो होते नहीं थे। कितनी कितनी शर्म आती थी जब मुझे किसी से घड़े में से पानी माँगना पड़ता था । घर का कोई भी सदस्य सामने हो, वह रहस्यमय मुस्कान से मुस्कराकर घड़े में पानी निकालकर गिलास में देता था। ``

``नानी ! अब तक ज़माना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है ? कल ही तो न्यूज़ पेपर में पढ़ा है कि एयरपोर्ट पर एक औरत पकड़ी गई जो अपने सेनेटरी नेपकिन्स में ड्र्ग्स छिपा कर ले जा रही थी। और तो और फ़िल्म `पैडमैन ` तक बन गई इस विषय पर। ``

प्रिशा ही क्यों पुरुष पत्रकारों व उसके आस पास बैठी तीस से लेकर चालीस वर्ष की युवा पत्रकार महिलाओं के भी बार बार सम्मानित करने के लिए नाम पुकारे जा रहे हैं। उनके पास बैठी कोई शाश्वती, गोदी में सम्मान स्वरुप मिली ट्रॉफ़ी को लिये बैठी है। उसके चेहरे से, भरे मांसल गालों से कितना गौरव टपक रहा है, आत्माभिमान है अपने पत्रकार होने पर। उससे रहा नहीं जाता वे पास बैठी पुरस्कृत शाश्वती कह ही देतीं है, ``इतनी यंग जर्नलिस्ट्स को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। हमारे ज़माने में तो एक औरत के लिए `जर्नलिस्ट `शब्द गाली की तरह था। हम लोगों ने इस प्रोफ़ेशन में काम करके बहुत तकलीफ़ें झेलीं है। कभी कभी ये प्रोफ़ेशन बड़ा इंसल्टिंग लगता था। ``

उसकी आई लाइनर लगी आँखें आश्चर्य से फ़ैल गईं, ``रियली ? ``

``ओ ----यस। एक जनाब की पत्नी बैंक ऑफ़िसर थीं। सारे दिन की नौकरी, आये दिन टूर पर रहतीं थीं। तब भी उन्हें कैरेक्टर के लिए क्लीन चिट मिली हुई थी। वे मुझसे यानि जो स्वतंत्र पत्रकार थी हफ़्ते या दस दिन में घर से बाहर तीन चार घण्टे के लिए निकलती थी जिससे अपने छोटे बच्चों को पूरा समय दे सकूं, दो बच्चों की माँ से वे ऐसे व्यवहार करते जैसे मैं बटरफ़्लाई हूँ। ``

``रियली सैड। ``

``बहुत ज़हर पीया है हमने अपने प्रोफ़ेशनल पैशन के लिए। ``

``सेल्यूट टु यू। मैम !आप लोगों ने तकलीफ़ झेलकर हमारे लिए रास्ते बनाये हैं। ``

उस तमीज़दार शाश्वती की बात से दामिनी को लगता है जैसे सारे पुरस्कार उनकी झोली में आ गिरे हैं।

दामिनी को लग रहा है कैसे ये मंच घूम गया है। उसने भी तो तीस पेंतीस वर्ष पहले स्वतंत्र पत्रकारिता की थी। किसी बिग शॉट का इंटर्व्यू लेने जाओ तो उनका पियोन ऑफ़िस दरवाज़ा खोलता था लेकिन उसके आस पास के समाज में से कुछ लोग कितना आँखों से ही व्यंग करते हुए देखते, ``ओ --हो --आप पत्रकार हैं ?``

उसे वे आँखें बेहद बेहद चुभ जातीं, उसका रोष निकलता अपनी दोस्त सोनल के सामने , ``लोग जब ये सुनते हैं कि मैं एक पत्रकार हूँ तो ऐसे घूरते हैं, ऑंखें जैसे कह रहीं हों कि आप फ़्लर्ट करने निकलीं हैं। मालुम है मुझे पर कुछ अख़बारों का कितना प्रेशर रहता है कि आप पत्रकार नहीं, एक विज्ञापन इकठ्ठा करने वाली सेल्स मेन बनिये या पैसा कमाकर नहीं दे सकतीं तो और भी बहुत कुछ है आपके पास। मुस्कराते समय भी ध्यान रखना पड़ता था कि कहीं मुस्कराते हुये होंठ कुछ अधिक तो नहीं फैल गए जिससे सामने वाले को ग़लत फ़हमी हो जाए कि मैं लिफ़्ट दे रही हूँ । ``

सोनल कहती, ``जब तू ग़लत नहीं है तो डरतीं क्यों है ?``

सच ही वह कुछ सहमी सी रहती थी। इंटर्व्यू लेने निकलती कसकर बाल बाँधकर, सादे कपड़ों में। इधर मन का डरा सहमा ये व्यक्तित्व उधर अपार बोल्डनेस, बिना हिचक किसी भी प्रसिद्द व्यक्ति के सामने आत्मविश्वास से प्रश्न पूछने का साहस । ये अहिन्दीभाषी प्रदेश हैतो ब्रोशर्स या डॉक्यूमेंट्स अंग्रेज़ी या गुजराती में मिलते. उन्हें पढ़कर हिंदी में लेख लिखो।

किसी ने तो उससे यहाँ तक पूछ लिया था, ``आर यू मैरिड ?``

``यस आई एम मैरिड, आई गॉट टू डॉटर्स। ``उसने ये कहकर जता दिया था कि वह ` अम्मा `टाइप चीज़ भी है। तब ज़माना ऐसा था कि वह ये नहीं पूछ पाई थी कि शादी के बाद क्या अक्ल मंद हो जाती है ? विवाहिता स्त्री पत्रकारिता नहीं कर सकती ?

``नानी, वो देखिये अपनी नेबर [पड़ौसिन ]सृष्टि दीदी उन्हें भी अवॉर्ड मिल रहा है कचरा बीनने वालियों के जीवन पर लिखने के लिए। ``पास बैठी उनकी धेवती मीशा फुसफुसाती है।

``ओ --वेरी गुड । ``इस प्रदेश में ही क्या सारे देश में पहले उसने कचरा बीनने वाली औरतों पर, और भी न जाने कितने शोधपरक लेख लिखे थे । तब कहाँ थे ये पुरस्कार देने वाले ?

वह गुपचुप मीशा को देखतीं हैं। उसके चेहरे का दर्द कुछ कम लग रहा है। जब हम दुखीं हों तो ज़माने से अपने को जोड़कर अपने दुःख को कुछ कम किया जा सकता है। कार्यक्रम समाप्त होते ही हॉल से निकलते समय मीशा सृष्टि से लिपट गई, ``आई एम प्राउड ऑफ़ दीदी !``

``थैंक यू। तुम तो घर से बाहर निकलती नहीं हो। कभी घर आओ न। ``

``श्योर। `` दामिनी शिकायत सी करती है, `` बड़ी मुश्किल से इसे निकाल कर लाईं हूँ वह भी डॉमिनोज में पिज़ा खाने की शर्त पर। यू कैन जॉइन अस। ``

``थैंक यू वेरी मच आंटी! बट सॉरी ! आज मम्मी पापा को ट्रीट देनी है। `` कहते हुए उसने ख़ुशी से छलछलाते उसने अपनी ट्रॉफ़ी ऊंची उठाई।

``ओ। के। । ``

डोमीनोज़ में पिज़ा खाते हुए मीशा बहुत खुश है।, ``नानी !कितना मज़ा आएगा जब दो दिन बाद मौसी व मम्मी आ जाएंगी। ``

``तुझे बताना भूल गई कामिनी और यामिनी भी कुछ दिन बाद आ रहीं हैं । ``

``हू इज़ कामिनी यामिनी?``

`` अरे भूल गई ?कामिनी यामिनी मेरी बहिनें है। इनके असली नाम भूल गई तेरी बिट्टो और छुटटो नानी, पहले आने को तैयार नहीं थी । मैंने ही कामिनी समझाया ज़िंदगी में पहली बार ऐसा हो रहा है कि मेरी बेटियां व यामिनी इकठ्ठी हो रहीं हैं। सब निशि की डैथ के बाद उससे उसके शहर मिलने जाएँ इससे तो वह यहीं आ जाये तो अच्छा है। बड़ी मुश्किल से ये बात उसके समझ में आई है। ``

``मैं तो बिट्टो और छुटटो नानी से बहुत सालों बाद मिलूँगी। मुझे उनका चेहरा हल्का धुंधला सा याद है। ``

``तू तभी मिली होगी जब तेरे नानू को हार्ट अटैक हुआ था । तब तू भी मम्मी पापा के संग उन्हें देखने आई थी। ``

``नानी ! मम्मी बता रहीं थीं कि नानू के जाने के बाद आपने पत्रकारिता कम कर दी है व एन जी ओ ज़ में बच्चों को पढ़ाने या दुखी फ़ीमेल्स को कॉनसिंलिंग के लिए जाने लगीं हैं ?``

``हाँ, मीशा! कुछ तो करना ही चाहती हूँ । ``

मीशा के साथ अपने बंगले का गेट खोलते हुए दामिनी को कितना सुकून मिल रहा है वर्ना छः कमरों के बंगले में किसी कार्यक्रम से अकेली लौटती है तो कितना बुरा लगता है। लगता है जैसे भूत बँगले में घुस रही है। एक `साथ `ही ज़िंदगी के अर्थ बदल देता है। वैसे बंगले के दो आऊट हाऊस [ सेवकों के लिए कमरे ] हैं। एक में बिन्दो अकेली दुर्गा माँ के मंदिर के साथ रहती है, दूसरे में माली का परिवार.

घर में अंदर जाते ही दामिनी ने अपना पर्स आलमारी में रखते हुए कहा, ``गुड नाइट माई प्रिंसी। ``

मीशा खिलखिला उठी, ``आज मैं सोने नहीं जाउंगी, आपके साथ बैठकर माताओं बहिनों वाले टी वी सीरियल देखूंगी। ``

दामिनी उसकी बात पर ज़ोर से हंस दी, बच्चे हँसते मुस्कराते ही अच्छे लगते हैं। मीशा की बड़ी बड़ी आँखों में दुःख के समुन्द्र की गहराई को देखना कितना पीड़ादायक होता है।

अब तक मीशा भी कपड़े बदल कर स्लीपिंग सूट पहनकर हाथ में टी वी रिमोट लिए उसका पसंदीदा चैनल लगाए सोफ़े पर आलथी पालथी मारे बैठी है।

टी वी देखती सोफ़े पर उसके पास बैठी मीशा ने उसकी तन्द्रा भंग की, `` ``नानी ! निशि मौसी को हुआ क्या था जो उन्होंने नन्हे बंटी को साथ लेकर मुम्बई में आत्महत्या कर ली ?``

``गॉड नोज़। लीव इट बच्चा ! तू आज बहुत दिनों बाद बाहर निकली है, अपना मूड ऑफ़ मत कर। ``

``प्लीज़ !नानी बताइये न ! ज़रूर उन्हें किसी मेल ने धोखा दिया होगा ?``

``ऐसे क्यों सोचती है मीशा ?सब पुरुष ख़राब नहीं होते। तू थोड़ा सब्र कर कामिनी अपने घर आ ही रही है। उससे पूछ लेना। ``

मीशा कैसी चिंता कर रही है निशी की और दामिनी को हर समय मीशा की मम्मी कावेरी याद आती रहती है। अकेले घर में बेटी के बिना कैसे उसके दिन कटते होंगे ?बेटी के लिए कैसी तड़पती होगी ?

नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail---- kneeli@rediffmail.com

परिचय -जन्म -आगरा.

वड़ोदरा में स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता का आरंभ `धर्मयुग `व `साप्ताहिक हिंदुस्तान `से -एन.जी.ओ`ज व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्तियों के साक्षात्कार, विविध विषयों पर शोधपरक लेखन. गुजरात की किसी भी भाषा की राष्ट्रीय स्तर की प्रथम पत्रकार, गुजरात के ` हू इज हू `में से एक, गुजरात हिन्दी साहित्य अकादमी के अधिकतम पांच पुरस्कार प्राप्त. `हैवनली हेल `कहानी संग्रह को अखिल भारतीय प्रथम पुरस्कार, `शेर के पिंजरे में `को अहिन्दी भाषी प्रदेशों में सर्वश्रेष्ठ का पुरस्कार। दोनों पर एम फ़िल की जा चुकी है।

सन् 1980 में `धर्मयुग `में प्रकाशित लेख द्वारा प्रथम बार व्रंदाबन में आकर बसने वाली बंगाली विधवाओं की दुर्दशा का राष्ट्र को परिचय. गुजरात में जन्मी लोक अदालत को भारत भर में लोकप्रिय बनाने में योगदान. 22 पुस्तकें छ: सम्पादित पुस्तकें, चौदह ई -बुक्स प्रकशित हो चुकीं हैं। अमेरिका, नीदरलैंड, लॉस एंजेल्स की ई --कल्पना ऑनलाइन पत्रिका पर अनेक रचनाएं व दो मिनट की ऑडियो कहानी`उस महल की सरगोशियां ` यू ट्यूब पर.गुजरात के वड़ोदरा में सं १९९० में व अहमदाबाद में सं २००९ में की अस्मिता, महिला बहुभाषी साहित्यिक मंच की स्थापना जिसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन चुकी है।

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